Yashwant Sinha ने आईएस की नोकरी छोड़ क्यूँ बने भारतीय राजनेता

Yashwant Sinha एक  भारतीय Politician और BJP  के एक सीनियर नेता है आईएस  से Politician बने यशवंत सिन्हा को लोग भारतीय अर्थव्यवस्था  को बदलने वाला नेता समझते हैं उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन काल में एक चरित्रवान और सज्जन व्यक्ति के रूप में जाने गए हैं जिन्होंने कभी भी घटिया राजनीति नहीं की है अपने नौकरशाही जीवन को वितरित करने के बाद यशवंत सिन्हा ने बीजेपी  के टिकट के रूप में भारतीय राजनीति में प्रवेश किया था. 

yashwant sinha biography

इसके अलावा वह Atal Bihari Vajpayee की सरकार में Finance minister भी रहे हैं इन्होंने कई इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस में और सामाजिक और राजनीतिक प्रतिनिधिमंडल में भारत का प्रतिनिधित्व किया है. जब Yashwant Sinha विदेश मंत्री थे तो उन्होंने भारत और फ्रांस के संबंधों को अच्छा बनाया जिसके फलस्वरूप उनको 2015 में फ्रांस का सर्वोच्च नागरिक Legion of Honor के awards  प्रदान किया गया. 13 मार्च 2021 यशवंत सिन्हा ने भारतीय जनता पार्टी कोलकाता में TMC  मैं शामिल हुए क्योंकि वह बीजेपी के केंद्रीय सरकार से नाराज चल रहे थे इसलिए उन्होंने वर्ष 2018 में भी भाजपा के साथ अपने सभी संबंधों को समाप्त करने की घोषणा की थी.

जीवन परिचय

Yashwant Sinha का  जन्म 15 जनवरी 1937 को Bihar की Rajdhani Patna में कायस्थ परिवार में हुआ था. इन्होंने अपनी शुरू की पढ़ाई पटना में ही की थी इसके बाद 1958 मैं Patna University से Political Science में अपनी डिग्री प्राप्त की अपनी डिग्री प्राप्त करने के बाद उन्होंने इसी University में 1960 तक  बैचलर Political Science के छात्रों को पढ़ाते रहें और साथ में Civil Service  के लिए भी तैयारी करते रहे और उनकी मेहनत रंग लाई साल 1960 में उनका सिलेक्शन भारतीय प्रशासनिक सेवा के लिए हो गया और वह अगले 24 साल तक उन्होंने अपने कई महत्वपूर्ण पदों पर सेवा की

  Yashwant Sinha प्रशासनिक सेवा के तौर पर 

यशवंत सिन्हा  भारतीय प्रशासनिक सेवा में कई महत्वपूर्ण पदों पर काम किया इनकी पहली नियुक्ति SDO  के तौर पर हुई और उन्होंने 4 सालों तक का इस पद पर रहे। अपने 24 साल के प्रशासनिक   करियर में वह बिहार सरकार में Finance Secretary  और Commerce मंत्रालय Deputy Secretary रहे  1971 में Yashwant Sinha को  बतौर First Secretary  जर्मनी भेजा गया। 1973 में उनकी नियुक्ति  जर्मनी  मैं भारत के Counsel के तौर पर हुई जर्मनी 

 में 1974 से 1980 तक इस पद पर काम किया।1980-84 के दौरान वह भारत सरकार के  भूतल  परिवहन मंत्रालय मैं Joint Secretary का पद संभाला और बंदरगाह पोत  परिवहन और सड़क परिवहन संबंधित मामलों पर काम किया। इस दौरान वे  जयप्रकाश नारायण समाजवादी आंदोलन से बहुत प्रभावित हुए थे।

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 राजनीति करियर

1984 का साल भारत मैं राजनीतिक उथल-पुथल वाला था।इसलिए Yashwant Sinha ने भारतीय प्रशासनिक सेवा से इस्तीफा दे दिया और भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए।1984 में लोकसभा चुनाव में लोकसभा चुनाव में हजारीबाग से चुनाव लड़ने का मौका मिला। नतीजों के हिसाब से अच्छी शुरुआत नहीं थी वह महज 10527 Vote लेकर तीसरे स्थान पर रहे इसके बाद साल 1986 में All India General Secretary और साल 1988 में Rajya Sabha का Member चुना गया।साल 1998 में बीजेपी के स्टार प्रचारक Lal Krishna Advani हजारीबाग में चुनावी सभा करने आए हुए थे।

चुनावी सभा के दौरान Lal Krishna Advani ने अपनी पार्टी के उम्मीदवार के पक्ष में वोट मांगते हुए कहा की आप Yashwant Sinha को ज्यादा से ज्यादा वोट देकर जातिये अगर हमारी अगर सरकार बनती है तो हम Yashwant Sinha को वित्त मंत्री बना देंगे।आडवाणी के भाषण का असर पड़ा और Yash want Sinha 3,23,283 वोटों लेकर पहले नंबर पर रहे।1998 में Atal Bihari Vajpayee की नेतृत्व वाली सरकार के वित्त मंत्री बनाये गए। उन्होंने 1998-2002 तक वित्त मंत्री और 2004 तक विदेश मंत्री रहे हालांकि 2004 के चुनाव मे हजारीबाग Seat से Yashwant Sinha को हार का सामना करना पड़ा।इसके बाद 2009 के चुनाव मे यशवंत सिन्हा जित गये पर बीजेपी सरकार हार गयी। 

उन्होंने भाजपा के उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया, एक पद जो उन्होंने दो साल के लिए रखा था। भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी के करीबी माने जाने वाले सिन्हा को पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी ने दरकिनार कर दिया। 2012 में, विद्रोह के संकेत में, सिन्हा ने देश के राष्ट्रपति पद के लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (कांग्रेस पार्टी) के उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी का समर्थन किया। उन्होंने 2013 में खुद को भाजपा की कोर टीम से बाहर रखा, हालांकि वह भाजपा की 80-सदस्यीय राष्ट्रीय कार्यकारी समिति के सदस्य बने रहे। सिन्हा ने अपने बेटे जयंत सिन्हा, जो झारखंड में अपने पुराने निर्वाचन क्षेत्र से चुने गए थे, के लिए रास्ता बनाने के बजाय 2014 के लोकसभा चुनाव नहीं लड़ने का विकल्प चुना। 2018 में, वरिष्ठ सिन्हा ने भाजपा छोड़ दी, यह दावा करते हुए कि पार्टी का नेतृत्व, विशेष रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, लोकतंत्र को धमकी दे रहे थे।

Yashwant Sinha ने क्यूँ छोड़ी बीजेपी 

यशवंत सिन्हा 2014 के बाद से ही बीजेपी नेतृत्व से नाराज चल रहे थे। अक्सर वह पार्टी नेतृत्व और केंद्र सरकार के फैसलों पर सवाल उठाते रहते थे। इसके बाद 2018 में उन्होंने BJP छोड़ दी थी। तब से ही उनके किसी पार्टी में शामिल होने के उत्सुकता लगाए जा रहे थे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ था। अब पश्चिम बंगाल चुनाव से ठीक पहले उन्होंने TMC जॉइन की है। पश्चिम बंगाल के चुनाव से TMC में शामिल होने के बाद उनको पार्टी का Vice President बना दिया है। Yashwant Sinha  को अटल बिहारी वाजपेयी के करीबी नेताओं में शुमार किया जाता था। एक नौकरशाही से राजनेता बने Yashwant Sinha तीन दशकों तक बीजेपी में रहे थे।

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Yashwant Sinha मोदी के साथ अनबन 

जब Yashwant Sinha ने 2009 के इलेक्शन जीता लेकिन  उन्हें 2014 में बीजेपी से टिकट नहीं दिया गया.Narinder Modi से उनकी दुरी बढ़ने लगी और आखिर Sinha ने 2018 में अपने 21 साल तक रहने के बाद उन्होंने बीजेपी पार्टी से इस्ताफा दे दिया था. इसके साथ वे बताते हैं की मैंने इस बात से वकालत की की Modi जी को प्रधानमत्री के लिए पार्टी का टिकट देना लेकिन 2014 का चुनाव आते आते मुझे इस बात का सेकत हो गया था की मेरा मोदी के साथ चलना मुश्किल होगा.

इसलिये मैं फैलसा किया की मैं यह चुनाव नहीं लड़ूंगा क्यूंकि पार्टी ने मेरी सीट की बदले मेरे बेटे इस सीट से  लड़ने का ऑफर दिया .2014 के चुनाव में मोदी जी  जीते और उन्हें मंत्री बना गया पर मे चाता था की  Kashmir में  वाजपेई जी की नीतियों का पालन हो पर ऐसा ना हुआ था क्योंकि उन्होंने इस पर बात की पर इस बातचीत कोई हल नहीं निकल सका 

  
Yashwant Sinha India Unmade Book

यह पुस्तक राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) सरकार के आर्थिक प्रदर्शन की आलोचना करती है, जिसका नेतृत्व 2017-2019 की अवधि के बीच प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी ने किया था। पुस्तक में शामिल विषयों में भारत के सकल घरेलू उत्पाद के कथित हेरफेर, 2016 के भारतीय नोटबंदी में कथित अनियमितताओं और भारतीय रिजर्व बैंक की स्वतंत्रता के साथ कथित हस्तक्षेप शामिल हैं। पुस्तक के लेखक मेक इन इंडिया कार्यक्रम की आलोचना करते हैं और माल और सेवा कर के कार्यान्वयन को घटिया मानते हैं।

पुस्तक के लेखकों का कहना है कि नरेंद्र मोदी ने भारतीय अर्थव्यवस्था को बदलने का एक सुनहरा अवसर गंवा दिया, जो उन्हें मिले बड़े चुनावी जनादेश की ओर इशारा करता है। लेखकों का यह भी तर्क है कि एबी वाजपेयी के नेतृत्व वाली पूर्ववर्ती राजग सरकार राजनीतिक और वैचारिक रूप से वर्तमान से अलग थी। मोदी की आलोचना करते हुए, यशवंत सिन्हा कहते हैं कि इस पुस्तक को लिखने में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है क्योंकि उनके पास राजनीतिक कार्यालय चलाने की कोई योजना नहीं है।

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ममता को बताया Real Fighter 

इससे पहले यशवंत सिन्हा ने Mamata Banerjee को लेकर बड़ा दावा किया था.उन्होंने कहा था,1999 में कंधार में आईसी-814 विमान के अपहरण के बाद से चल रहे तनाव के बीच,Mamata Banerjee ने बंधकों को रिहा करने के बदले  में आप बंदक रहने को कहा था जब Indian Airlines का हवाई जहाज hijack कर लिया गया था और आतंकवादी उसे कंधार ले गए थे, तब कैबिनेट में एक दिन चर्चा हो रही थी तो ममता बनर्जी ने फैलसा किया कि वह खुद बंधक बनकर जाएंगी. शर्त ये होनी चाहिए कि बाकी जो बंधक हैं, उनको आतंकवादी छोड़ दें और वो उनके कब्जे में चली जाएंगी. उसके बाद जो कुर्बानी देनी होगी, वो देश के लिए देने को तैयार होंगी. सिन्हा ने यह भी कहा था कि ममता बनर्जी अपने शुरुआती दिनों से एक ‘फाइटर’ रही हैं और उनमें अभी भी लड़ने का जज्बा बरकरार है.

विवाद 

• नवंबर 2013 में, पप्पू यादव ने अपनी आत्मकथा- द्रोहकाल का पथिक में आरोप लगाया कि उनकी भारतीय संघीय लोकतांत्रिक पार्टी के 3 सांसदों को 2001 में एनडीए में शामिल होने के लिए सिन्हा (तत्कालीन वित्त मंत्री) से पैसा मिला।

• सिन्हा को यूटीआई घोटाले में उनकी कथित भागीदारी के लिए भी आलोचना की गई थी।

• 4 अप्रैल 2017 को, उन्हें हजारीबाग पुलिस ने पुलिस पर पथराव करने के लिए गिरफ्तार किया था। सिंगा एक धार्मिक जुलूस पकड़ रहे थे, और जब पुलिस ने उन्हें रोका, तो सिन्हा और उनके समर्थकों ने उनकी गिरफ्तारी के लिए पुलिस पर पथराव शुरू कर दिया।

• 27 सितंबर 2017 को, उन्होंने फिर से केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली के खिलाफ बयान देकर विवाद को आमंत्रित किया। उन्होंने कहा, “मैं अपने राष्ट्रीय कर्तव्य में विफल हो जाऊंगा, अगर मैं अब भी वित्त मंत्री ने अर्थव्यवस्था में गड़बड़ी के खिलाफ नहीं बोला।”

• सिन्हा को हजारीबाग से चुनाव लड़ने के लिए अपने बेटे जयंत सिन्हा को उत्तराधिकारी के रूप में नामित करके भाई-भतीजावाद को बढ़ावा देने के लिए भी आलोचना की गई है।

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