पूरे भारत को अन्न देने वाला अन्नदाता किसान एक बार फिर सड़क पर है। इसका कारण है केंद्र की सरकार नरेंद्र मोदी द्वारा लाए गए कुछ ऐसे कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों ने Kisan Andolan लगाकर सड़क पर उतरने को मजबूर है। क्योंकि किसानों को इस बात डर है कि अगर नए कानूनों से मंडियां खत्म हो जाएंगी साथ ही न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर होने वाली खरीदारी भी रुक जाएगी। पर इसके उल्ट सरकार का कहना की MSP पर खरीदारी बंद नहीं होगी
वैसे तो अलग-अलग राज्यों में किसान सरकारों के खिलाफ खड़े होते रहे हैं।इन किसानों आंदोलनों की वजह से सरकारों के शिखर हिलते भी रहे हैं और गिरते भी रहे हैं। 2017 में मध्यप्रदेश के मंदसौर में हुए किसान आंदोलन को कोई भी नहीं भूला है.क्योंकि इस किसान आन्दोलन मैं हुई झड़प में पुलिस की गोली लगने से सात किसानों की मौत हो गई थी.
वर्तमान आंदोलन की बात करें तो Punjab से उठी आंदोलन की चिंगारी से अब पूरा देश धधक रहा है। हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश,ओडिशा,पश्चिम बंगाल, आंध्रप्रदेश, बिहार समेत देश के अन्य हिस्सों में भी किसान सड़कों पर उतर आए हैं। दिल्ली को तो मानो चारों ओर से आंदोलनकारी किसानों ने घेर लिया है।
Table of contents
- भारत के किसानों को मिला सबसे बड़ा नेता
- Kisan Andolan ने अंग्रेजों को भी किया था तंग
- अखिल भारतीय किसान सभा
- दक्कन का विद्रोह
- बिजोलिया किसान आंदोलन
- एका Kisan Andolan
- मोपला Kisan Andolan
- कूका विद्रोह
- रामोसी किसानों का विद्रोह
- तेभागा आंदोलन
- ताना भगत आंदोलन
- तेलंगाना किसान आन्दोलन
- नील विद्रोह (चंपारण सत्याग्रह)
- खेड़ा सत्याग्रह
- बारदोली Kisan Andolan
- बेगूँ Kisan Andolan
भारत के किसानों को मिला सबसे बड़ा नेता
स्व. Mahendra Singh Tikait की असली पहचान तो Kisan Andolan की वजह से हुई थी के और वे देश के सबसे बड़े किसान नेता माने जाते थे। Chaudhary Charan Singh और Chaudhary Devi Lal भी किसान नेता थे, लेकिन उनकी अपनी राजनीतिक पार्टियां भी थीं, जबकि Tikait इन पार्टियां विशुद्ध थे।
साल 1987 में पश्चिमी Uttar Pradesh के Muzaffarnagar के Karnakhedi गांव में बिजली घर जलने के कारण किसान बिजली ना आने का सामना कर रहे थे। 1 अप्रैल, 1987 को उन्हीं किसानों में से एक Mahendra Singh Tikait ने सभी किसानों से बिजली घर को घेरने को कहा यह वह दौर था जब गांवों में मुश्किल से बिजली से मिल पाती थी। इसके बाद देखते ही देखते लाखों किसान जमा हो गए। इतने किसानों को देख खुद टिकैत को भी विश्वास नहीं हो रहा था की इतने किसान इकट्ठा हो जाएंगे।
बिजली घर के खिलाफ विद्रोह की वजह से किसानों को टिकैत के रूप बड़ा किसान नेता मिल गया था जो भारत के किसानों की इकट्ठा कर सकता हैजनवरी 1988 में किसानों ने अपने नए के मुताबिक भारतीय किसान यूनियन के झंडे तले मेरठ में 25 दिनों का धरना लगाया था । इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी बहुत प्रशंसा मिली।
इस धरना में भारत के किसान संघ और किसान नेता शामिल हुए थे। उस समय सरकार किसानों को उनकी फसलों सही दाम नहीं देती थी इसलिए किसानों की मांग थी कि सरकार उनकी फसलों का दाम साल 1967 से ही लागू करे । उस समय Mahendra Singh Tikait राजनीति को ना मानने वाले नेता थे,इसलिए उन्होंने कभी कोई राजनीतिक दल नहीं बनाया था ।
Kisan Andolan ने अंग्रेजों को भी किया था तंग
किसानों ने अंग्रेजों के राज में भी समय-समय पर किसानों आंदोलन किये हैं और भारतीय किसानों ना सिर्फ भारत को आजाद कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, बल्कि अंग्रेज़ी शक्ति की दीवारों को भी हिलाकर रख दिया था।हालांकि आज़ादी से पहले किसान आंदोलनों पर गांधी जी का साफ प्रभाव देखने को मिलता था, यही कारण था की उस समय किसान आहिंस्कवादी थे ।
साल 1857 के विद्रोह निकाम होने के बाद हर विद्रोह का मोर्चा किसानों ने ही ने ही संभाला था क्योंकि अंग्रेजों और देशी रियासतों के सबसे बड़े आंदोलन उनके शोषण से ही पैदा हुए थे। असल में देखें तो जितने भी ‘किसान आंदोलन’ हुए, उनमें सबसे ज्यादा आंदोलन अंग्रेजों के खिलाफ थे। देश में नील पैदा करने वाले किसानों का आंदोलन, पाबना विद्रोह, तेभागा आंदोलन, चम्पारण का सत्याग्रह और बारदोली में प्रमुख से आंदोलन हुए। इनका नेतृत्व भी महात्मा गांधी और वल्लभभाई पटेल जैसे नेताओं ने किया।
अखिल भारतीय किसान सभा
1923 में स्वामी सहजानंद सरस्वती ने ‘बिहार किसान सभा’ का गठन किया था। 1928 में ‘आंध्र प्रांतीय रैय्यत सभा’ की स्थापना एनजी रंगा ने की। उड़ीसा में मालती चैधरी ने ‘उत्कल प्रान्तीय किसान सभा’ की स्थापना की। बंगाल में ‘टेनेसी एक्ट’ को लेकर 1929 में ‘कृषक प्रजा पार्टी’ की स्थापना हुई। अप्रैल, 1935 में संयुक्त प्रांत में किसान संघ की स्थापना हुई। इसी वर्ष एनजी रंगा एवं अन्य किसान नेताओं ने सभी प्रांतीय किसान सभाओं को मिलाकर एक ‘अखिल भारतीय किसान संगठन’ बनाने की योजना बनाई।
दक्कन का विद्रोह
इस आंदोलन की शुरुआत दिसंबर 1874 में महाराष्ट्र के शिरूर तालुका के करडाह गांव से हुई। दरअसल,कालूराम सूदखोर ने किसान Babasaheb Deshmukh के खिलाफ अदालत से उनके घर की नीलामी की हुक्मनामा प्राप्त कर लिया था । इस पर किसान भड़क ऊठे उन्होंने साहूकारों के विरुद्ध आंदोलन शुरू कर दिया।
इसके अलावा किसानों ने साहूकारों के घरों और कार्यकालों में घुस कर किसानों ने उनकी लेखा बहियाँ को जला दिया था.खास बात यह है कि साल 1875 तक यह आंदोलन एक-दो स्थानों तक सीमित नहीं रहा और पुरे देश के विभिन्न भागों में फैला।किसानों का यह गुस्सा देख साहूकार और बड़े वापारी रातों रात घरों को छोड़ के भागने लगे थे.
बिजोलिया किसान आंदोलन
बिजोलिया आंदोलन मेवाड़ राज्य के किसानों द्वारा 1897 ईस्वी में शुरू किया गया था. यह आंदोलन किसानों पर अधिक लगान लगाए जाने के विरोध में किया गया था.इस आंदोलन के मुख्य कारण थे 84 प्रकार के लाग बाग़(कर),लाटा कुंता कर( खेत में खड़ी फसल के आधार पर कर ) चवरी कर(किसान की बेटी की शादी पर कर) तलवार बंधाई कर( नए जागीरदार बनने पर) आदि.
यह किसान आंदोलन भारत भर में प्रसिद्ध रहा जो मशहूर क्रांतिकारी विजय सिंह पथिक के नेतृत्व में चला था। यह आंदोलन बिजोलिया किसान आंदोलन 1897 से प्रारंभ होकर 1941 तक चलता रहा। किसानों ने जिस प्रकार निरंकुश नौकरशाही एवं स्वेच्छाचारी सामंतों का संगठित होकर मुकाबला किया वह इतिहास बन गया।यह 44 सालों तक चलने वाला इकलौता अहिंसक आन्दोलन था.इस Kisan Andolan में महिला जैसे अंजना देवी चौधरी, नारायण देवी वर्मा और रमा देवी आदि ने प्रमुखता से हिस्सा लिया था. गणेश शंकर विद्यार्थी ने अपने समाचार पत्र प्रताप में इस आंदोलन को पेश किया था.
एका Kisan Andolan
यह Kisan Andolan उत्तर प्रदेश से शुरू हुआ था। होमरूल लीग के कार्यकर्ताओं के प्रयास तथा मदन मोहन मालवीय के मार्गदर्शन के परिणामस्वरूप फरवरी 1918 में उत्तर प्रदेश में ‘किसान सभा’ का गठन किया गया। 1919 के अंतिम दिनों में किसानों का संगठित विद्रोह खुलकर सामने आया। एका आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक घटक के रूप में जाना जाता है।
Uttar Pradesh के हरदोई ,बहराइच एवं सीतापुर ज़िलों में लगान में वृद्धि एवं उपज के रूप में लगान वसूली को लेकर अवध के किसानों ने यह आन्दोलन चलाया। इस आन्दोलन के प्रमुख नेता ‘मदारी पासी ‘ और ‘सहदेव’ थे। ये दोनों निम्न जाति के किसान थे। इस Kisan Andolan को Jawaharlal Nehru ने अपने सहयोग प्रदान किया।
मोपला Kisan Andolan
Kerala के मालाबार क्षेत्र में मोपला किसानों द्वारा 1920 में विद्रोह किया गया। शुरु में यह Kisan andolan अंग्रेज हुकूमत के ख़िलाफ था। इस Kisan Andolan मे महात्मा गांधी, शौकत अली, मौलाना अबुल कलाम आजाद जैसे नेताओं का सहयोग इस आंदोलन को प्राप्त था।लेकिन 1920 में इस Kisan Andolan ने हिन्दू-मुस्लिमों के मध्य सांप्रदायिक आंदोलन का रूप ले लिया और बाद में इसे कुचल दिया गया।
कूका विद्रोह
साल 1872 में पंजाब के कूका लोगों (नामधारी सिखों) द्वारा किया गया यह एक हथियारबंद विद्रोह था। कृषि संबंधी समस्याओं तथा अंग्रेजों द्वारा गायों की हत्या को बढ़ावा देने के विरोध में यह विद्रोह किया गया था। Balak Singh उनके ओर गुरु रामसिंह जी ने इसका नेतृत्व किया था। कूका विद्रोह के दौरान 66 नामधारी सिख शहीद हो गए थे।
रामोसी किसानों का विद्रोह
यह किसान आन्दोलन महाराष्ट्र में Vasudev Balwant फड़के के नेतृत्व में रामोसी किसानों ने जमींदारों के अत्याचारों के विरुद्ध विद्रोह किया था। कुछ इसी तरह Andhra Pradesh में Sitaram Raju के नेतृत्व में औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध यह आंदोलन हुआ था. जो 1879 से लेकर 1920-22 तक छिटपुट ढंग से चलता रहा।
तेभागा आंदोलन
किसान आंदोलनों में 1946 का बंगाल का तेभागा आंदोलन सबसे ताकतवर किसान आंदोलन था.जिसमें किसानों ने ‘फ्लाइड कमीशन’ की सिफारिश के अनुरूप लगान की दर घटाकर एक तिहाई करने के लिए संघर्ष शुरू किया था। Bangal का तेभागा आंदोलन में किसान अपनी फसल का दो-तिहाई हिस्सा उत्पीड़ित बटाईदार किसानों को दिलाने के लिए किया गया था। यह आंदोलन बंगाल के करीब 15 जिलों में फैला, विशेषकर उत्तरी और तटवर्ती सुंदरबन क्षेत्रों में।
इस आंदोलन में लगभग 50 लाख किसानों ने भाग लिया। यह आंदोलन जोतदारों के विरूद्ध बंटाईदारों का आंदोलन था। इस आंदोलन के महत्त्वपूर्ण नेता ‘कम्पाराम सिंह एवं भवन सिंह’ थे। ‘तिभागा चाई’ का मतलब हमें दो तिहाई भाग चाहिए, इस आंदोलन का प्रमुख नारा था। इस Kisan Andolan में महिलाओं ने न केवल सक्रियता से भाग लिया और कई स्थानों पर उन्होंने नेतृत्व भी किया।
ताना भगत आंदोलन
ताना भगत आन्दोलन की शुरुआत वर्ष 1914 ईं. में बिहार में हुई थी। यह आन्दोलन लगान की ऊँची दर तथा चौकीदारी कर के विरुद्ध किया गया था। मुण्डा आंदोलन के ख़त्म होने के बाद करीब 13 साल बाद ताना भगत आंदोलन शुरू हुआ था।
यह एक ऐसा धर्मिक आन्दोलन था जिसका सिर्फ लक्ष राजनीतक थी. इस आंदोलन मे आदिवासी लोगों को इकट्ठा कर एक नए पंथ का निर्माण किया था.सही मायने में बिरसा मुन्डा आंदोलन का विस्तार हुआ था.
इस आन्दोलन के प्रवर्तक ‘जतरा भगत’ थे, जिसे कभी बिरसा मुण्डा, कभी जमीं तो कभी केसर बाबा के समतुल्य होने की बात कही गयी है। इसके अतिरिक्त इस आन्दोलन के अन्य नेताओं में बलराम भगत, गुरुरक्षितणी भगत आदि के नाम प्रमुख थे।
तेलंगाना किसान आन्दोलन
यह किसान आन्दोलन साल 1946 ई. में शुरू किया गया था. Andhra Pradesh में यह Kisan Andolan जमींदारों एवं साहूकारों के शोषण की नीति के खिलाफ तथा भ्रष्ट अधिकारियों के अत्याचार के खिलाफ शुरू किया गया था। कम कीमत पर गल्ला वसूली’ इस आन्दोलन का मुख्य कारण था। साल 1858 के बाद हुए किसान आंदोलन का पिछले आन्दोलन से अलग था। अब किसान बगैर किसी मध्यस्थ के खुद आपस में लड़ने लगे थे।
इन किसानों की ज्यादातर मांगे वित्तीय समस्या से संबंधित होती थीं।Kisan Andolan ने Political Power की कमी में British उपनिवेश का विरोध नहीं किया।किसानों की लड़ाई के पीछे उद्देश्य सिस्टम में बदलाव नहीं था, बल्कि वे यथास्थिति बनाए रखना चाहते थे। इन आंदोलनों की असफलता के पीछे किसी ठोस विचारधारा, सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक कार्यक्रमों का अभाव था।
नील विद्रोह (चंपारण सत्याग्रह)
नील विद्रोह की शुरुआत बंगाल के किसानों द्वारा सन 1859 में की गई थी। दूसरी ओर, बिहार के चंपारण में किसानों से अंग्रेज बागान मालिकों ने एक अनुबंध करा लिया था,जिसके अंतर्गत किसानों को जमीन के 3/20 वें हिस्से पर नील की खेती करना अनिवार्य था। इसे ‘तिनकठिया पद्धति’ कहते थे।
जब 1917 में गांधी जी इन विषम परिस्थितियों से अवगत हुए तो उन्होंने बिहार जाने का फैसला किया। गांधी जी मजहरूल हक,नरहरि पारीख, राजेन्द्र प्रसाद एवं जेबी कृपलानी के साथ Bihar गए और British हुकूमत के खिलाफ अपना पहला सत्याग्रह प्रदर्शन किया।
खेड़ा सत्याग्रह
Gandhi JI ने नील आंदोलन के बाद ने 1918 में खेड़ा किसानों की आर्थिक समस्याओं को लेकर आंदोलन कर दिया था। इस तरह Gandhi Ji ने अपना पहला वास्तविक ‘किसान सत्याग्रह’ की शुरुआत की। खेड़ा के कुनबी-पाटीदार किसानों ने सरकार से लगान को कम करने के मांग की थी, लेकिन उन्हें कोई मदद नहीं मिली थी. Gandhiji ने 22 मार्च, 1918 को खेड़ा आंदोलन की बागडोर संभाली। अन्य सहयोगियों में Sardar Vallabh Bhai Patel और इंदुलाल याज्ञनिक थे।
बारदोली Kisan Andolan
बारदोली सत्याग्रह का आंदोलन ‘भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन’ का सबसे सफल आन्दोलन रहा है। यह Kisan Andolan जून 1928 में गुजरात में हुआ यह एक प्रमुख किसान आंदोलन था.जिसका नेतृत्व वल्लभ भाई पटेल ने किया था। इस का विरोध इसलिए हुआ था क्योंकि उस समय की सरकार ने की किसानों के कर में 30 प्रतिशत कर को बढ़ाया दिया था. पटेल ने इस लगान वृद्धि का जमकर विरोध किया। सरकार ने इस आंदोलन को खत्म करने के लिए कठोर कदम उठाए,पर विवश होकर उसे किसानों की मांगों को मानना पड़ा।
एक न्यायिक अधिकारी बूम फील्ड और एक Revenue Officer मैक्सवेल ने पूरे मामलों की जांच कर 30 प्रतिशत लगान वृद्धि को गलत ठहराते हुए इसे घटाकर 6.03 प्रतिशत कर दिया था ।इस Kisan Andolan के कामयाब होने के बाद वहां की महिलाओं ने वल्लभभाई पटेल को ‘सरदार’ नाम की उपाधि दे दी। किसानों कड़ा संघर्ष संघर्ष को देख गांधीजी ने कहा कि इस तरह का हर संघर्ष, हर कोशिश हमें स्वराज के करीब पहुंचा रही है और हम सबको स्वराज की मंजिल तक पहुंचने में जायदा सिद्ध हो सकते हैं.
बेगूँ Kisan Andolan
बेगूँ किसान आंदोलन 1921 में चित्तौड़गढ़ में शुरू हुआ। यह आन्दोलन बेगार प्रथा के खिलाफ शुरू हुआ था।आंदोलन की शुरुआत रामनारायण चौधरी ने की थी, बाद में इसके उत्तराधिकारी विजय सिंह पथिक ने सत्ता संभाली। इस समय बेगू के ठाकुर अनूप सिंह थे।
1922 में, अनूप सिंह और आरक्षित सेवा संघ के मंत्री रामनारायण चौधरी के बीच एक समझौता हुआ, जिसे ‘बोल्शेविक समझौता’ कहा गया। यह संज्ञा किसान आंदोलन के प्रस्तावों के लिए गठित ट्रेंच कमीशन द्वारा दी गई थी। 13 जुलाई 1923 को गोविंदपुरा गाँव में किसान सम्मेलन हुआ, सेना ने किसानों पर गोलियां चलाईं। जिसमें रूपाजी धाकड़ और कृपाजी धाकड़ नाम के दो किसान शहीद हो गए थे। अंत में, बेगारी की प्रथा को समाप्त कर दिया गया। विजय सिंह पथिक के नेतृत्व में आंदोलन समाप्त हुआ।
आपको पता चल गया की किस तरह किसानों ने अपने हको के लिए अपनी जान की परवाह करे बिना कैसे सरकार से साथ टकरावे हुए हैं.